गुरुवार, 13 जून 2024

Cheque bounce case: विलय याने मर्ज हुए बैंक के चेक से क्या 138 का अपराध होगा ?

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Cheque bounce case: विलय याने मर्ज हुए बैंक के चेक से क्या 138 का अपराध होगा ?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में इंडियन बैंक में विलय हो चुके चेक के अनादर के मामले में बांदा की अर्चना सिंह गौतम की याचिका स्वीकार करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण सिंह देशवाल ने दिया है।

आवेदनकर्ता ने 21 अगस्त 2023 को विपक्षी को एक चेक जारी किया जिसे उसने 25 अगस्त 2023 को बैंक में प्रस्तुत किया। बैंक ने इसे अमान्य करार देते हुए चेक लौटा दिया। जिस पर कोर्ट द्वारा जारी समन आदेश को आवेदनकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।


कोर्ट ने कहा कि एन आई एक्ट की धारा 138 के अनुसार यदि अमान्य चेक बैंक में प्रस्तुत करने पर बैंक द्वारा अस्वीकार किया जाता है तो धारा 138 का अपराध गठित नहीं होता है। इलाहाबाद बैंक का इंडियन बैंक में 1 अप्रैल 2020 को विलय हुआ तथा इसके चेक 30 सितंबर 2021 तक मान्य थे। इसके बाद प्रस्तुत किया गया चेक यदि बैंक अमान्य करता है तो चेक बाउंस का केस नहीं बनता है। कोर्ट ने कहा कि एन आई एक्ट के अनुसार जारी किया गया चेक वैध होना चाहिए तभी उसके बाउंस होने पर अपराध गठित होता है।

शुक्रवार, 31 मई 2024

5 लाख लोगों के OBC सर्टिफिकेट कैंसिल

 


5 लाख लोगों के OBC सर्टिफिकेट कैंसिल
कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला सुनिये.

हाईकोर्ट ने 2010 के बाद जारी सभी ओबीसी सर्टिफिकेट को रद्द कर दिया. कोर्ट ने कहा है कि ये सर्टिफिकेट  नियम का पालन किए बिना दिए गए थे.
जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस राजशेखर मंथा की बेंच ने ये फैसला उस याचिका पर दिया है, जिसमें ओबीसी सर्टिफिकेट देने की प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी.
ममता सरकार ने भी ओबीसी सर्टिफिकेट दिए गए हैं, वो सभी रद्द हो गए हैं. कोर्ट ने 2010 के बाद दिए गए सारे  सर्टिफिकेट को रद्द करने का आदेश दिया है. लेकिन, 2011 से ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं.

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शनिवार, 4 मई 2024

Unnatural sex with wife not offence under IPC Section 377

 पत्नी से अप्राकृतिक संबंध क्राइम नहीं...' हाई कोर्ट ने रद्द कर दी पति के खिलाफ दर्ज FIR

Unnatural sex with wife not offence under IPC Section 377


आरोपीने अपनी पत्नी की शिकायत पर अपने खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने के लिए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने उस व्यक्ति के खिलाफ उसकी पत्नी द्वारा अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगाते हुए दर्ज की गई FIR को रद्द कर दिया. फैसला सुनाते वक्त कोर्ट ने कहा कि यह कानूनन अपराध नहीं है क्योंकि महिला की उसके साथ शादी हुई थी. 


जस्टिस जीएस अहलूवालिया की सिंगल बेंच ने कहा कि इस नतीजे पर पहुंचने के बाद कि एक पति द्वारा कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध IPC की धारा 377 के तहत अपराध नहीं है, कोर्ट की राय है कि इस पर आगे विचार-विमर्श की जरूरत नहीं है कि क्या एफआईआर तुच्छ आरोपों के आधार पर दर्ज किया गया था या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) पर सवाल उठाए


सुप्रीम कोर्ट ने 'व्यावहारिक वास्तविकताओं' के अनुरूप नई दंड संहिता में घरेलू हिंसा कानून में बदलाव का आग्रह किया शनिवार, 04 मई, 2024


   भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा नए आपराधिक कानूनों की शुरूआत को भारतीय समाज के लिए एक ऐतिहासिक क्षण बताए जाने के कुछ दिनों बाद, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) पर सवाल उठाए और कहा कि इसने पुन: प्रस्तुत किया है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए शब्दशः।


सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और संसद से व्यावहारिक वास्तविकताओं पर विचार करते हुए नई आपराधिक संहिता में आवश्यक बदलाव करने का आग्रह किया।


न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एक पत्नी द्वारा अपने पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ दायर मामले को रद्द करते हुए ये टिप्पणियां कीं।


अदालत ने कहा, "हम विधानमंडल से व्यावहारिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर गौर करने और दोनों नए प्रावधानों के लागू होने से पहले भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 और 86 में आवश्यक बदलाव करने पर विचार करने का अनुरोध करते हैं।" कहा


सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ एक अपील की सुनवाई के दौरान आईं, जिसने पति के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया था। शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि पत्नी द्वारा दायर मामला काफी अस्पष्ट, व्यापक और आपराधिक आचरण के किसी विशिष्ट उदाहरण के बिना है।


"एफआईआर और आरोप पत्र के कागजों को पढ़ने से पता चलता है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट में लगाए गए आरोप काफी अस्पष्ट, सामान्य और व्यापक हैं, जिनमें आपराधिक आचरण का कोई उदाहरण नहीं बताया गया है। यह भी ध्यान रखना उचित है कि कोई विशेष तारीख या समय नहीं है।" सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''एफआईआर में कथित अपराध/अपराधों का खुलासा किया गया है। यहां तक ​​कि पुलिस ने अपीलकर्ता के परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही बंद करना उचित समझा।''


विवाह के पूर्ण विनाश का नेतृत्व करें


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के कानूनी तरीके मामूली मुद्दों पर विवाह को पूरी तरह से नष्ट कर देते हैं और पति-पत्नी के बीच मेल-मिलाप की उचित संभावना को भी कम कर देते हैं।


"कई बार, माता-पिता,


बंद सहित


पत्नी के रिश्तेदार बनाते हैं


तिल से पहाड़.


स्थिति को बचाने और विवाह को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करने के बजाय, उनकी कार्रवाई, या तो अज्ञानता के कारण या पति और उसके परिवार के सदस्यों के प्रति घृणा के कारण, छोटी-छोटी बातों पर विवाह को नष्ट कर देती है। पत्नी, उसके माता-पिता और उसके रिश्तेदारों के दिमाग में सबसे पहली बात जो आती है वह है पुलिस


सभी बुराइयों का रामबाण इलाज हैं. जैसे ही मामला पुलिस तक पहुंचता है, तो पति-पत्नी के बीच सुलह की उचित संभावना होने पर भी वे नष्ट हो जाएंगे,'' अदालत ने कहा

बुधवार, 1 मई 2024

किरायेदार कभी न करे कब्जा इसलीये रेंट एग्रीमेंट की बजाए यह कागज बनाये This is why the tenant should never take possession Make this document instead of rent agreement Landlord and tenant

 किरायेदार कभी न करे कब्जा इसलीये

 रेंट एग्रीमेंट की बजाए यह कागज बनाये

मकान मालिक और किरायेदार

 (Landlord and tenant) मकान मालिक और किरायेदार के बीच विवाद की  अक्‍सर कोर्ट तक जाते हैं. ज्यादा दिन मकान में किराएदार बन के रहने के बाद किराएदार के मन मे कब्जा कर लेने की मंशा जाग उठती है और वह कब्जा करने के लिए हर कोशिश करता है और कुछ कानून के मदद से उसे कब्जा करने में कामयाबी भी मिलती है. कई बार यह विवाद उस संपत्ति पर कब्‍जे (Possession of property) को लेकर होता है जिसमें किरायेदार रहते हैं. इससे बचने के लिए मकान मालिकों (Landlords) ने रेंट एग्रीमेंट (Rent Agreement) बनवाने शुरू कर दिए, लेकिन आज भी कब्‍जे की दावेदारी वाले विवाद बढ़ रहे हैं. कहीं विवाद सर्वोच्च न्यायालय तक जाते हैं लेकिन, आज हम आपको ऐसे डॉक्‍यूमेंट के बारे में बता रहे हैं, जो किरायेदार की इस दावेदारी को पूरी तरह खारिज कर देंगे। लेकिन किरायेदारों की मंशा परास्त करने वाले ऐसे ही एक दस्त के बारे में आज हम बताने जा रहे हैं

मकान मालिकों के हितों की रक्षा के लिए ऐसे कागज का नाम है रेंट या फिर लीज एग्रीमेंट (Rent or lease agreement) इसी लीज एग्रीमेंट की व्यवस्था चल रही है. इस एग्रीमेंट के बावजूद बड़े पैमाने पर किरायेदारों ने मकान पर कब्‍जा करने की कोशिश की है. इसके जवाब में अब संपत्ति के मालिकों ने ‘लीज एंड लाइसेंस’ एग्रीमेंट (‘Lease and License’ Agreement) का विकल्प अपनाना शुरू कर दिया है. लीज एंड लाइसेंस भी काफी हद तक रेंट या लीज एग्रीमेंट या किरायानामे की तरह ही होता है. बस, इसमें लिखे जाने वाले कुछ क्लॉज बदल कर लिखे जाते हैं.



अभी तक मकान मालिकों के हितों की रक्षा 

लीज ऐंड लाइसेंस कैसे बनता है और इससे क्‍या फायदे हैं इस बारे प्रॉपर्टी एक्‍सपर्ट सी. एम. माने वकील कानून की जानकारी दे रहे हैं।


यह कागज पूरी तरह मकान मालिक के पक्ष में है

चाहे रेंट, हो या लीज एग्रीमेंट हो या फिर लीज एंड लाइसेंस इन सभी दस्तावेजों को एकतरफा रूप से मकान मालिक के हितों की रक्षा के लिए बनाया जाता है. ताकि, संपत्ति पर किरायेदार की तरफ से कब्जा किए जाने वाली संभावनाओं को खत्म किया जा सके. यही इसका खास मकसद है लिहाज इसमें स्पष्ट तौर पर उल्लेख कर दिया जाता है कि संपत्ति का स्वामी उसके किरायेदार को नियत समय के लिए रिहाइशी अथवा व्यावसायिक इस्तेमाल करने को दे रहा है. समय की यह अवधि 11 महीनों से लेकर कुछ साल हो सकती है. यदि किरायेदार रिहाइशी इस्तेमाल के लिए संपत्ति ले रह है तो उसका व्यावसायिक इस्‍तेमाल नहीं होगा. एग्रीमेंट आगे नहीं बढ़ाने पर किरायेदार को खाली करना पड़ेगा. लीज ऐंड लाइसेंस में मकान मालिक को ‘लाइसेंसर’ और किरायेदार को ‘लाइसेंसी’ कहा जाता है।


दोनों में क्‍या है अंतर जाने -

रेंट एग्रीमेंट (rent Agreement)  को आम तौर पर रिहाइशी इस्तेमाल की संपत्तियों के लिए 11 महीने की अवधि के लिए बनाया जाता है. वहीं लीज एग्रीमेंट का इस्तेमाल 12 या इससे ज्यादा महीने की अवधि के लिए बनाया जाता है. साथ ही इसे सामान्यत: कॉमर्शियल प्रॉपर्टीज को किराये पर देने के लिए उपयोग में लाया जाता है. तो, लीज ऐंड लाइसेंस को 10 से 15 दिन से लेकर 10 साल की समय के लिए बनवाया जा सकता है. खास बात यह है कि इन सभी दस्तावेजों को स्टाम्प पेपर पर नोटरी के जरिये ही बना सकते हैं. इसके अलावा यदि किराये की अवधि 12 साल या इससे अधिक समय की हो तो उसे कोर्ट से रजिस्टर्ड भी करवाना जरूरी है, क्योंकि रियल एस्टेट राज्य सूची का विषय है ऐसे में भारत के विभिन्न राज्यों  में रजिस्ट्रेशन शुल्क किराये का एक से दो प्रतिशत का होता है।


दोनों में कौन सा दस्तावेज बेहतर है?

रेंट या लीज एग्रीमेंट की तुलना में लीज ऐंड लाइसेंस ज्यादा बेहतर माना जा सकता है. इसे 10 से 15 दिन की न्यूनतम अवधि के साथ ही 10 साल जैसी लंबी अवधि के लिए बनवाया जा सकता है. इसके साथ ही इसमें स्पष्ट उल्लेख कर दिया जाता है कि लाइसेंसी यानी कि किरायेदार किसी भी रूप में संपत्ति पर अपना हक नहीं जतायेगा और न ही मांगेगा. ऐसा होने से मकान मालिक के पास उस संपत्ति का हक बरकरार रहता है भले ही कुछ समय के लिए वह किरायेदार के कब्जे में हो. इसमें एक और अच्छी बात यह भी है कि जब दो पक्ष आपसी सहमति से रेंट या लीज एग्रीमेंट साइन करते हैं और दोनों पक्षों में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है तो उन परिस्थितियों में उसके सक्सेसर यानी वारिस आपसी सहमति से उस एग्रीमेंट को जारी रख सकते हैं. वहीं, लीज एंड लाइसेंस में ऐसा नहीं है. किसी की मौत होने पर यह समाप्त हो जाता है। इसलिए कब्जा करने की संभावना खत्म हो जाती है


Youtube channel link

https://youtu.be/6yzzvEa3soQ


किरायेदार कभी न करे कब्जा इसलीये रेंट एग्रीमेंट की बजाए यह कागज बनाये मकान मालिक और किरायेदार

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दो वकीलों को उत्तर प्रदेश की अदालतों में वकालत करने से रोक दिया

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दो वकीलों को उत्तर प्रदेश की अदालतों में वकालत करने से रोक दिया


इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दो वकीलों को उत्तर प्रदेश की अदालतों में वकालत करने से रोक दिया, क्योंकि उन्हें सिविल कोर्ट के न्यायाधीश के साथ दुर्व्यवहार करने और एक मामले में वादियों पर हमला करने वाली भीड़ का नेतृत्व करने का दोषी पाया गया था।


न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने वकील रण विजय सिंह और मोहम्मद से भी पूछा। आसिफ को कारण बताना होगा कि उन्हें अदालत की आपराधिक अवमानना ​​करने के लिए दंडित क्यों नहीं किया जाए।

जब एक मुकदमे में कार्यवाही चल रही थी, तो वकीलों के एक समूह ने अदालत कक्ष में प्रवेश किया और न्यायाधीश पर एक और मामला उठाने के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया। मुकदमा जहां सिंह स्वयं वादी हैं।

न्यायालय ने कहा “ मामले के तथ्यों में, हम इलाहाबाद उच्च न्यायालय नियम, 1952 के अध्याय XXIV नियम 11(2) के तहत अपने क्षेत्राधिकार का भी उपयोग करते हैं और रण विजय सिंह और मोहम्मद को प्रतिबंधित करते हैं। आसिफ को इलाहाबाद में जिला जजशिप के परिसर में प्रवेश करने से रोका गया। इन अधिवक्ताओं को यूपी राज्य में प्रैक्टिस करने से रोका जाता है , ”कोर्ट ने आदेश दिया।

“ पीठासीन अधिकारी पर 2023 के मूल वाद संख्या 152 के मामले को तुरंत उठाने के लिए दबाव डाला गया और उपरोक्त मामले के वादियों के साथ अदालत के अंदर मारपीट की गई। पीठासीन अधिकारी के साथ भी दुर्व्यवहार किया गया , ”सिविल कोर्ट के न्यायाधीश ने संदर्भ में कहा।

यह भी कहा गया कि बार के अध्यक्ष ने मामले को सुलझाने की कोशिश की थी लेकिन सिंह और आसिफ ने उनकी बात भी नहीं सुनी.

सिविल जज ने कहा, इसके बाद बार एसोसिएशन के अध्यक्ष खुद को बचाने के लिए अदालत से बाहर चले गए।

इसके अलावा, वकीलों के साथ आई भीड़ कथित तौर पर मंच पर आ गई और दो वादियों के साथ मारपीट की। जब उन्होंने खुद को बचाने के लिए जज के चैंबर में घुसने की कोशिश की, तो वकीलों द्वारा लाई गई भीड़ ने उनका पीछा किया और संदर्भ के अनुसार वहां भी उनके साथ मारपीट की।

हालांकि पुलिस को सूचित कर दिया गया था, लेकिन काफी देर बाद वे पहुंचे और पीठासीन अधिकारी अदालत में प्रवेश कर सके।

हाई कोर्ट ने घटना को गंभीरता से लेते हुए कहा,

“इसने अदालती कार्यवाही के संचालन के तरीके पर एक गंभीर सवालिया निशान छोड़ दिया है। पीठासीन अधिकारी द्वारा किया गया संदर्भ वकीलों के कहने पर अदालती कार्यवाही के पूर्ण विघटन को दर्शाता है। इस तरह के मामले न्यायिक प्रणाली के कामकाज के लिए एक गंभीर चुनौती हैं और इस घटना को गंभीरता से देखा जाना चाहिए।''

कोर्ट ने प्रयागराज के जिला न्यायाधीश को अन्य वकील और व्यक्तियों की संलिप्तता पर सीसीटीवी फुटेज की जांच करने के बाद एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा। 

इसने पुलिस आयुक्त को अदालत परिसर में मौजूद सुरक्षा व्यवस्था के संबंध में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को भी कहा।

कोर्ट ने आदेश दिया, आयुक्त यह भी सुनिश्चित करेंगे कि जिला न्यायाधीश, प्रयागराज के निर्देश पर पर्याप्त पुलिस बल तैनात किया जाए, ताकि इस तरह की घटना दोबारा न हो। "

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

ग्रामपंचायत सरपंच अपात्र नियम Gram Panchayat Sarpanch Apatra Niyam


ग्रामपंचायत सरपंच

अपात्र नियम Gram Panchayat Sarpanch Apatra Niyam Marathi


 महाराष्ट्र ग्रामपंचायत अधिनियम कायद्याने ज्याप्रमाणे, ग्रामपंचायतीला बळकटी देण्यासाठी ग्रामपंचायतीच्या पदाधिकाऱ्यांना अधिकार प्रदान केले आहेत. व त्याचप्रमाणे, ग्रामपंचायतीचा कारभार सुव्यवस्थेचा व्हावा म्हणून ग्रामपंचायतीचे पदाधिकारी असेलेले सरपंच, उपसरपंच, सदस्य यांना कायद्याच्या चौकटीत राहून आणि कायद्याने निर्गमित केलेले पात्रतेचे निकष कायम ठेवून कर्तव्य, जबाबदाऱ्या पार पाडावी लागतात. असे कर्तव्य पार पाडत असताना सरपंच, उपसरपंच, सदस्य यांनी कसूर केल्यास संबंधितास अपात्रतेची (निरर्हता) तरतूद देखील कायद्यात करून ठेवली आहे.



ग्रामपंचायतीची निवडणूक लढण्यापूर्वी किंवा निर्वाचित (निवडून आलेले) ग्रामपंचायतीचे पदाधिकारी असेलेले सरपंच, उपसरपंच व ग्रामपंचायत सदस्य महाराष्ट्र ग्रामपंचायत अधिनियम कलम १४ मधील तरतुदीनुसार तसेच अधिनियमात वेळोवेळी निर्गमित केलेल्या कलमांअंतर्गत पुढील बाबींसाठी आपल्या अधिकार पदावरून अपात्र Gram Panchayat Sadasya Apatra ठरविले जाऊ शकतात.



सदस्य, उपसरपंच, सरपंच अपात्रतेचे निकष:

• ग्रामपंचायतीच्या वतीने केलेल्या कोणत्याही करारात स्वतः किंवा भागीदारांमार्फत प्रत्यक्ष किंवा अप्रत्यक्ष रित्या हिस्सा किंवा हितसंबध (वैयक्तिक फायद्यासाठी गुप्त कारण उदा. पैसा किंवा सत्ता) गुंतले असल्यास सरपंच, उपसरपंच, सदस्य अपात्र ठरवता येते. (कलम १४ छ).


• अस्पृशता अधिनियम, १९५५ किंवा मुबंई दारूबंदी अधिनियम, १९४९ किंवा तत्सम कायद्याखाली दोषी ठरविल्या असल्यास अशी व्यक्ती ग्रामपंचातीची कोणतेही पद धारण करण्यास अपात्र ठरते. (कलम १४ क - एक). 


• ग्रामपंचायतीचे किंवा जिल्हापरिषदेला देणे असलेले कर किंवा फी रक्कम मागणी केल्यापासून तीन महिन्यांच्या आत भरण्यास कसूर केल्यास संबंधित सरपंच, उपसरपंच, सदस्य यांचेवर अपात्रतेची कार्यवाही करता येते. (कलम १४ -ज).


• परकीय राज्याचे नागरिकत्व स्वीकारल्यास सदर व्यक्ती ग्रामपंचायत सरपंच, उपसरपंच, सदस्य राहण्यास अपात्र ठरवता येते. (कलम १४-त्र).


• दोन पेक्षा जास्त अपत्य असतील (१२ सप्टेंबर २००१ नंतर जन्मलेले) तर ग्रामपंचायत सदस्य, सरपंच, उपसरपंच म्हणून राहण्यास पात्र राहणार नाही किंवा अपात्र ठरविण्यात येतील. (कलम १४ त्र -१).


• जिल्हा परिषद किंवा पंचायत समिती सदस्य म्हणून निवडून आल्यास अशी व्यक्ती ग्रामपंचायत सदस्य म्हणून अपात्र ठरविण्यात येते. जिल्हा परिषद किंवा पंचायत समिती पदावर निवडून आल्यास त्वरित एका पदाचा राजीनामा देणे आवश्यक आहे. (कलम १४ ज-२).


• शासकीय जमिनीवर किंवा मालमत्तेवर अतिक्रमण केले असल्यास अशा व्यक्तीस (ग्रामपंचायत सदस्य अपात्र नियम अतिक्रमण) अपात्र ठरविण्यात येते. (कलम १४ ज).


• राज्य निवडणूक आयोगाने निर्हर (अपात्र) ठरविलेल्या व्यक्ती पदावर राहण्यास अपात्र ठरविण्यात येते. (कलम १४ क).


• राज्य निवडणूक आयोगाने निर्धारीत केलेल्या वेळेमध्ये आणि आवश्यक केलेल्या रीतीने निवडणूकीचा जमा खर्च सादर न केल्यास अशा व्यक्तीस अपात्र ठरविण्यात येते. (कलम १४ ब ).


• ग्रामपंचायत सरपंच, उपसरपंच, सदस्य शौचालय बांधकाम करून वापर करीत नसल्यास अपात्र ठरविण्यात येते.  (कलम १४ ज -५).


• अशी व्यक्ती जी वेडसर किंवा सक्षम न्यायालयाने जीला विकल मनाची म्हणून घोषित असेल त्या व्यक्तीला सरपंच, उपरपंच, सदस्य म्हणून अपात्र राहते. (कलम १४ -ख).




• ती व्यक्ती नादार (दारिद्र्य, दिवाळखोरी) असेल किंवा तीने नादारीतून मुक्तता मिळवली नसेल अशी व्यक्ती ग्रामपंचायतीचे कोणतेही पद धारण करण्यास अपात्र ठरते. (कलम १४ ग). 


• कर्तव्यात कसूर केल्यास विभागीय आयुक्तांकडून सदर व्यक्तीला पदावरून काढून टाकण्यात येते. (कलम ३९).


• ग्रामपंचायतीच्या परवानगी शिवाय लागोपाठ ६ महिने बैठकीला गैरहजर राहिल्यास त्याचे सदस्य पद अपात्र ठरविण्यात येते. (कलम ४०).


• ग्रामपंचायत मासिक सभा/बैठका न घेतल्यास सरपंच, उपसरपंच पद अपात्र ठरविण्यात येते. (कलम ३६).


• नियमाप्रमाणे सहा ग्रामभांपैकी एकही ग्रामसभा घेण्यास कसूर केल्यास संबंधित सरपंच/उपसरपंच यांना अपात्र ठरविण्यात येते. (कलम ७).


• ग्रामपंचायत अधिनियम कलम १४५ नुसार १२४ व कलम ४५ मधील कामे करण्यास ग्रामपंचायतीने कर्तव्यात कसूर केल्यास ग्रामपंचायत विघटीत/विभाजित करण्यात येते.


• ग्रामपंचायतीचे कोणतेही मालमत्तेची व पैशाची हानी व अपव्यय व दुरुपयोग केल्यास संबंधिताचे पद अपात्र करता येते. (कलम १७८-१).


• शासकीय रक्कमेचा अपहार केल्याचे सिद्ध झाल्यास जिह्याधिकारी हे संबंधीतास अपात्र ठरवितात. (कलम १४०-५).


वरीलपैकी कोणत्याही एका कर्तव्यात कसूर केल्यास संबधीत सरपंच, उपसपंच व ग्रामपंचायतीचे सदस्य यांना त्यांच्या अधिकारपदापासून दूर करता येते. याबाबतचे अंतिम निर्णय जिल्हाधिकारी व विभागीय आयुक्त यांच्याकडे असतात.


ग्रामीण जनतेची कायद्याबाबतची उदासीनता:

ग्रामपंचायतीचा अविभाज्य घटक असेलेली आणि लोकशाहीचा प्रत्यक्ष आविष्कार असलेल्या ग्रामसभेला कायद्याने अधिकचे अधिकार प्राप्त करून दिले आहेत. परंतु, ग्रामीण जनेतेत ग्रामपंचायतीच्या कायद्याबद्दल माहितीचा अभाव दिसून येतो किंवा एखाद्याला कायद्याबाबतची माहिती असूनही ग्रामस्थांचा पाठिंबा किंवा एकजूट नसते. यामुळे ग्रामपंचायतीच्या पदाधिकारीद्वारे कायद्यातून पळवाटा काढल्या जातात. असे असले तरीही, शासनाने वेळोवेळो कायद्यात सुधारणा करून जनतेला किंवा ग्रामसभेला अधिक सक्षम आणि बळकटी दिली आहे. जेणेकरून कायद्यातून पळवाटा शोधणाऱ्यांना किंवा गैरकारभार करणाऱ्यांवर आळा बसविला जाऊ शकतो.




वरीलपैकी नमूद बाबींपैकी कोणत्याही एका कर्तव्यात कसूर केल्यास संबंधित सरपंच, उपसरपंच सदस्य यांना पदावरून कमी करण्यात येऊ शकते. याशिवाय सरपंच व उपसरपंच यांवर अविश्वासाचा ठराव व माहितीचा अधिकार कायदा इत्यादिंचा योग्य रीतीने वापर केल्यास हे चित्र बदलता येऊ शकते. यासाठी ग्रामस्थांची एकजूट आणि कायद्याबतची माहिती असणे ही तितकेच आवश्यक असते.


हे देखील वाचा : सरपंच अविश्वास प्रस्ताव


गावातील कार्यकर्त्यांसाठी मार्गदर्शक सूचना:

• कायदा वाचा, पुन्हा वाचा आणि कायद्याचे नियमही वाचा.


• ग्रामसभेत/मासिक सभेत गावातील सर्वांचा जिव्हाळ्याचा विषय प्रथम हाती घ्या. कुणाच्या वैयक्तिक फायद्याचा नको.


• आपले काम पारदर्शक ठेवा. गावातील सर्वांना खुलेपणी सर्व माहिती सांगा. बैठक करताना खुल्या ठिकाणी करा. कोणाच्या घरात, बंद भिंतीमध्ये नको.


• प्रशासन किंवा ग्रामपंचायतीचे पदाधिकारी आपले शत्रू नाही. त्यांनी नियमानुसार कामे करावे, एवढेच आपल्याला हवे आहे. म्हणून प्रशासनातल्या कोणाशीही बोलताना शिव्या देऊ नका, त्यांचा चुकूनही अपमान करू नका. हळूहळू त्यांच्याशी दोस्ती झाली, तर आपलाच मार्ग प्रशस्त होणार आहे.


• लढत बसणे हे आपले ध्येय नाही. आपल्या गावाचा, समाजाचा एखादा प्रश्न सुटला पाहिजे आणि तोही न्याय मार्गाने, सन्मानाने सुटला पाहिजे हा आपला उद्देश आहे.


• संघटीत होऊनच कायद्याच्या मार्गाने लढा. एकट्याने लढून पुढे जाता येत नाही.


• गावातील विरोधी गटाशी बोला. त्यांना माहिती मिळाल्याने आपले नुकसान होणार नसते, उलट त्यांचे सहकार्य मिळाले तर आपलेच काम सोपे होते.


• जेव्हा फायदा मिळण्याची वेळ येते, तेव्हा आधी गावतल्या सर्वात गरीब माणसांचा विचार करा. फायदा मिळताना त्याचा नंबर पहिला लागला पाहिजे. आपला शेवटी.


• गावातील जुन्या माणसांना, पुढाऱ्यांना, वडीलधाऱ्यांना मान द्या. त्यांना दुखावल्यामुळे आपल्या कामात अडचणी येतात.


• ग्रामपंचायतीची विविध बँक खात्यातील आर्थिक व्यवहारांकडे, शासकीय अनुदाने व ग्रामपंचायत निधीची माहिती ठेवा, यांकडे लक्ष असू द्या.


• ग्रामसभेबाबत जनजागृती करा. विविध संकल्पना राबवून ग्रामस्थांची ग्रामसेभेतील सहभाग वाढवा.


वाचकहो, गावातील कार्यकर्त्यांसाठी मार्गदर्शक सूचनापैकी असे आणखी काही मुद्दे तुमच्याकडे असतील ज्यामुळे गावकार्यकर्ताला गावाच्या विकासाला चालना देता येईल तर खाली टिप्पणी करून नक्की कळवा तसेच सरपंच, उपसरपंच, सदस्य अपात्रतेचे निकष, ग्रामीण जनतेची कायद्याबाद्दल असलेली उदासीनता याबाबतही आपल्या प्रतिक्रिया अवश्य कळवा.


आपल्या प्रतिक्रिया आमच्यासाठी खूप महत्वाच्या आहेत.


सी. एम. माने (वकील)

मो. 9850579953