किरायेदार कभी न करे कब्जा इसलीये
रेंट एग्रीमेंट की बजाए यह कागज बनाये
(Landlord and tenant) मकान मालिक और किरायेदार के बीच विवाद की अक्सर कोर्ट तक जाते हैं. ज्यादा दिन मकान में किराएदार बन के रहने के बाद किराएदार के मन मे कब्जा कर लेने की मंशा जाग उठती है और वह कब्जा करने के लिए हर कोशिश करता है और कुछ कानून के मदद से उसे कब्जा करने में कामयाबी भी मिलती है. कई बार यह विवाद उस संपत्ति पर कब्जे (Possession of property) को लेकर होता है जिसमें किरायेदार रहते हैं. इससे बचने के लिए मकान मालिकों (Landlords) ने रेंट एग्रीमेंट (Rent Agreement) बनवाने शुरू कर दिए, लेकिन आज भी कब्जे की दावेदारी वाले विवाद बढ़ रहे हैं. कहीं विवाद सर्वोच्च न्यायालय तक जाते हैं लेकिन, आज हम आपको ऐसे डॉक्यूमेंट के बारे में बता रहे हैं, जो किरायेदार की इस दावेदारी को पूरी तरह खारिज कर देंगे। लेकिन किरायेदारों की मंशा परास्त करने वाले ऐसे ही एक दस्त के बारे में आज हम बताने जा रहे हैं
मकान मालिकों के हितों की रक्षा के लिए ऐसे कागज का नाम है रेंट या फिर लीज एग्रीमेंट (Rent or lease agreement) इसी लीज एग्रीमेंट की व्यवस्था चल रही है. इस एग्रीमेंट के बावजूद बड़े पैमाने पर किरायेदारों ने मकान पर कब्जा करने की कोशिश की है. इसके जवाब में अब संपत्ति के मालिकों ने ‘लीज एंड लाइसेंस’ एग्रीमेंट (‘Lease and License’ Agreement) का विकल्प अपनाना शुरू कर दिया है. लीज एंड लाइसेंस भी काफी हद तक रेंट या लीज एग्रीमेंट या किरायानामे की तरह ही होता है. बस, इसमें लिखे जाने वाले कुछ क्लॉज बदल कर लिखे जाते हैं.
अभी तक मकान मालिकों के हितों की रक्षा
लीज ऐंड लाइसेंस कैसे बनता है और इससे क्या फायदे हैं इस बारे प्रॉपर्टी एक्सपर्ट सी. एम. माने वकील कानून की जानकारी दे रहे हैं।
यह कागज पूरी तरह मकान मालिक के पक्ष में है
चाहे रेंट, हो या लीज एग्रीमेंट हो या फिर लीज एंड लाइसेंस इन सभी दस्तावेजों को एकतरफा रूप से मकान मालिक के हितों की रक्षा के लिए बनाया जाता है. ताकि, संपत्ति पर किरायेदार की तरफ से कब्जा किए जाने वाली संभावनाओं को खत्म किया जा सके. यही इसका खास मकसद है लिहाज इसमें स्पष्ट तौर पर उल्लेख कर दिया जाता है कि संपत्ति का स्वामी उसके किरायेदार को नियत समय के लिए रिहाइशी अथवा व्यावसायिक इस्तेमाल करने को दे रहा है. समय की यह अवधि 11 महीनों से लेकर कुछ साल हो सकती है. यदि किरायेदार रिहाइशी इस्तेमाल के लिए संपत्ति ले रह है तो उसका व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं होगा. एग्रीमेंट आगे नहीं बढ़ाने पर किरायेदार को खाली करना पड़ेगा. लीज ऐंड लाइसेंस में मकान मालिक को ‘लाइसेंसर’ और किरायेदार को ‘लाइसेंसी’ कहा जाता है।
दोनों में क्या है अंतर जाने -
रेंट एग्रीमेंट (rent Agreement) को आम तौर पर रिहाइशी इस्तेमाल की संपत्तियों के लिए 11 महीने की अवधि के लिए बनाया जाता है. वहीं लीज एग्रीमेंट का इस्तेमाल 12 या इससे ज्यादा महीने की अवधि के लिए बनाया जाता है. साथ ही इसे सामान्यत: कॉमर्शियल प्रॉपर्टीज को किराये पर देने के लिए उपयोग में लाया जाता है. तो, लीज ऐंड लाइसेंस को 10 से 15 दिन से लेकर 10 साल की समय के लिए बनवाया जा सकता है. खास बात यह है कि इन सभी दस्तावेजों को स्टाम्प पेपर पर नोटरी के जरिये ही बना सकते हैं. इसके अलावा यदि किराये की अवधि 12 साल या इससे अधिक समय की हो तो उसे कोर्ट से रजिस्टर्ड भी करवाना जरूरी है, क्योंकि रियल एस्टेट राज्य सूची का विषय है ऐसे में भारत के विभिन्न राज्यों में रजिस्ट्रेशन शुल्क किराये का एक से दो प्रतिशत का होता है।
दोनों में कौन सा दस्तावेज बेहतर है?
रेंट या लीज एग्रीमेंट की तुलना में लीज ऐंड लाइसेंस ज्यादा बेहतर माना जा सकता है. इसे 10 से 15 दिन की न्यूनतम अवधि के साथ ही 10 साल जैसी लंबी अवधि के लिए बनवाया जा सकता है. इसके साथ ही इसमें स्पष्ट उल्लेख कर दिया जाता है कि लाइसेंसी यानी कि किरायेदार किसी भी रूप में संपत्ति पर अपना हक नहीं जतायेगा और न ही मांगेगा. ऐसा होने से मकान मालिक के पास उस संपत्ति का हक बरकरार रहता है भले ही कुछ समय के लिए वह किरायेदार के कब्जे में हो. इसमें एक और अच्छी बात यह भी है कि जब दो पक्ष आपसी सहमति से रेंट या लीज एग्रीमेंट साइन करते हैं और दोनों पक्षों में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है तो उन परिस्थितियों में उसके सक्सेसर यानी वारिस आपसी सहमति से उस एग्रीमेंट को जारी रख सकते हैं. वहीं, लीज एंड लाइसेंस में ऐसा नहीं है. किसी की मौत होने पर यह समाप्त हो जाता है। इसलिए कब्जा करने की संभावना खत्म हो जाती है
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https://youtu.be/6yzzvEa3soQ
किरायेदार कभी न करे कब्जा इसलीये रेंट एग्रीमेंट की बजाए यह कागज बनाये मकान मालिक और किरायेदार